शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

--: ब्राह्मण-ग्रन्थ :---


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यजुर्वेदीय ब्राह्मण (शुक्ल यजुर्वेद)
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शतपथ-ब्राह्मण
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शतपथ-ब्राह्मण के रचयिता और नामकरण
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शतपथ-ब्राह्मण ब्राह्मण-ग्रन्थों में मूर्धन्य है। विषय-विवेचन की दृष्टि से और स्थूलता की दृष्टि से इसे प्रथम स्थान प्राप्त है। यागानुष्ठान के विस्तृत विवेचन के कारण इसको सबसे अधिक ख्याति प्राप्त हुई है।

इसके रचयिता याज्ञवल्क्य ऋषि है, जो वाजसनि ऋषि के पुत्र हैं। इन्हें "वाजसनेय" भी कहा जाता है।  एक कथानक के अनुसार याज्ञवल्क्य को सूर्य की कृपा से इसका ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होंने इसकी व्याख्या कीः---

"आदित्यानीमानि शुक्लानि यजूंषि वाजसनेयेन याज्ञवल्क्येन आख्यायन्ते।" (शतपथ-ब्राह्मणः--14.9.4.33)

वाजसनि के विषय में आचार्य सायण ने काण्व संहिता की भूमिका में लिखा है कि वाजसनि अन्न-दाता थेः--(वाज--अन्न, सनि--दाता) , इसलिए उनका नाम वाजसनि पडा। महाभारत और स्कन्दपुराण (6.129.1-2) के अनुसार याज्ञवल्क्य का आश्रम सौराष्ट्र में था।  कुछ स्थलों में इनके पिता का नाम ब्रह्मरात और देवरात लिखा है। संभवतः ये नाम वाजसनि के नामान्तर हो। वाजसनि की पत्नी सुनन्दा थी। बृहदारण्यकोपनिषद् (2.4.1) के अनुसार याज्ञवल्क्य की दो पत्नियाँ थीं---मैत्रेयी और कात्यायनी। इनके पुत्र का नाम कात्यायन (पारस्कर) था। पारस्कर ने एक गृह्यसूत्र की रचना की थी, जो "पारस्कर गृह्यसूत्र" के नाम से प्रसिद्ध है। याज्ञवल्क्य के मामा वैशम्पायन थे।

याज्ञवल्क्य ने शतपथ-ब्राह्मण की रचना करके इसे सौ शिष्यों को पढाया था। याज्ञवल्क्य ने शिक्षा और स्मृति की भी रचना की थी।

शतपथ-ब्राह्मण में 100 हैं, इसलिए इसका नाम शतपथ पडाः--"शतं पन्थानो मार्गा नामाध्याया यस्य तत् शतपथम्।" जिसमें 100 अध्याय-रूपी मार्ग हैं, उसे "शतपथ" कहते हैं। काण्व-शाखा के शतपथ में 104 अध्याय हैं, फिर भी 100 के महत्त्व को देखते हुए उसे भी शतपथ ही कहा जाता है। इस प्रकार शतपथ माध्यन्दिन और काण्व दोनों शाखाओं में उपलब्ध है।

प्रतिपाद्य-विषयः--
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माध्यन्दिन (शुक्ल यजुर्वेदीय) शतपथ-ब्राह्मण में कुल 14 काण्ड, 100 अध्याय और 7624 कण्डिकाएँ हैं। सम्पूर्ण ग्रन्थ 14 भागों में विभक्त है, जिन्हें काण्ड कहा जाता है। काण्डों के उपविभाग अध्याय है और अध्यायों के उपविभाग ब्राह्मण हैं। इन ब्राह्मणों के भी उपविभाग हैं, इन्हें कण्डिका कहते हैं। इस प्रकार इसके सन्दर्भ निर्देश के लिए 4 संख्याएँ आती हैं---1. काण्ड, 2. अध्याय, 3. ब्राह्मण और 4. कण्डिका। 

इसका विवेचन इस प्रकार हैः---
काण्ड एकः--दर्श और पूर्मास याग।
काण्ड दो---अग्निहोत्र, पिण्डपितृयज्ञ, दाक्षायण याग, नवान्नेष्टि, चातुर्मास्य याग।
काण्ड 3 और 4---सोमयाग।
काण्ड 5---वाजपेय और राजसूय यज्ञ।
काण्ड 6---सृष्टि--उत्पत्ति, चयन-निरूपण।
काण्ड 7 और 8----चयन-निरूपण, वेदि निर्माण।
काण्ड 9---चयन निरूपण, शतरुद्रिय होम, राष्ट्रभृत् होम।
काण्ड 10---चयननिरूपण, वेदि-निर्माण।
काण्ड 11---दर्श-पूर्णमास, दाक्षायण यज्ञ, उपनयन, पञ्च महायज्ञ, स्वाध्याय प्रशंसा।
काण्ड 12---द्वादशाह, संवत्सर सत्र, ज्योतिष्टोम, सौत्रामणी याग, प्रायश्चित्त।
काण्ड 13----अश्वमेध, पुरुषमेध, सर्वमेध, दशरात्र, पितृमेध।
काण्ड 14---प्रवर्ग्ययाग, ब्रह्मविद्या, बृहदारण्यक-उपनिषद्।

काण्व-शाखीय शतपथ
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काण्व शतपथ ब्राह्मण में क्रम-विन्यास में कुछ भिन्नता है। विषय वस्तु प्रायः समान है। इसमें 17 काण्ड, 104 अध्याय, 435 ब्राह्मण और 6806 कण्डिकाएँ हैं।

दोनों ब्राह्मणों में प्रतिपाद्य विषय एक होने पर भी क्रम में भेद है। विषय-प्रतिपादन की दृष्टि से माध्यन्दिन शतपथ अधिक व्यवस्थित है

रचनाकालः---
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डॉ. मैक्डानल  आदि पाश्चात्त्य विद्वान् ब्राह्मण-ग्रन्थों का काल 800 ई. पू. से 500 ई. पू. के मध्य मानते हैं। श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित  के अनुसार शतपथ-ब्राह्मण का काल 2500 ई. पू. है।  इसका समर्थन प्रो. सी. वी. वैद्य, श्री दफ्तरी और पं. सातवलेकर ने किया है। 

शतपथ-ब्राह्मण में राजा के राज्याभिषेक में 17 अन्य जलों में सर्वप्रथम सरस्वती के जल लेने का विधान हैः--"सास्वतीरेव प्रथमा गृह्णाति।" (शतपथ-5.3.4.3)

इससे ज्ञात होता है कि उस समय सरस्वती नदी विद्यमान थी। ताण्ड्य-ब्राह्मण (25.10.16)  में सरस्वती नदी के "विनशन" स्थान पर लुप्त होने और "प्लक्ष प्रास्रवण" स्थान पर पुनः दिखाई पडने का उल्लेख है। इससे ज्ञात होता है कि शतपथ ब्राह्मण अन्य ब्राह्मणों से प्राचीन है और उस समय सरस्वती लुप्त नहीं हुई थी। शतपथ ब्राह्मण और तैत्तिरीय ब्राह्मण ही संहिता ग्रन्थों के तुल्य स्वरचिह्नों से युक्त है